प्रश्न?
हवा में तैरते हैं
जैसे प्रकाश की किरण में झलकते है
धूल के कण अंधेरे कमरे में
भले ही हम उन्हें देख नही पाये उजाले में
प्रश्न?
जमे रहते हैं किताबों की जिल्द पर
मेज की दराज में
शर्ट के कॉलर पर
या उलझे बालों में
कितना भी झाड़ो बुहारो
प्रश्न उड़ कर इस जगह से उस जगह चले जाते है
या जमे रह जाते है सोफे की किनारो में फँसी धूल की तरह
प्रश्न?
अमीबा की तरह होते हैं
हर इक प्रश्न जब टूट्ता है समाधानों में
तो अपने हर हिस्से से पैदा करता है प्रश्न कई
जैसे चट्टान टूट कर बँट जाती है
पत्थर, गिट्टी, रेत या धूल में
और ज़िन्दा रहती है टुकडों में बँटी हुई
प्रश्न?
बारूद की तरह होते हैं
जब तक बना सहा नही तो फूट पड़ते हैं।
प्रश्न?
तेजाब की तरह होते हैं
जहाँ गिरे वहाँ अपनी छाप छोड़ी
या किसी और को पनपने नहीं दिया।
प्रश्न?
बंदूक की तरह होते हैं
जब दगते है तो यह नहीं देखते
कि दिल घायल होगा या मन आहत
बस आग उगलते हैं।
प्रश्न?
चाहे जैसे भी हो
प्रश्न, प्रश्न ही होते है
कई समाधानों का समांकलन
एक प्रश्न नहीं होता
एक प्रश्न के कई समाधान हो सकते हैं
प्रश्न, प्रश्न ही रहतें हैं।
-मुकेश कुमार तिवारी
बहुत बढ़िया...लाजवाब
ReplyDeleteलाजवाब!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..।
ReplyDeleteआपके इस प्रश्न का तो कोई उत्तर ही नहीं है मुकेश जी । लाजवाब ।आज लाजवाब भी सार्थक हो गया। बधाई
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब ।
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