ज़िन्दगी की राह में वो मुक़ाम आये हैं।
हमने चोट खाई है फिर भी गीत गाये हैं।।
लाख हादिसे हमें रोकें आ के राह में,
रोके रुक न पाएंगे जब क़दम बढ़ाये हैं।
जगमगाता आवरण देखा तो पता चला,
पन्ने उस क़िताब के ख़ून में नहाये हैं।
आई जो बुरी घड़ी वक़्त ने ये सीख दी,
मतलबी जहान में अपने भी पराये हैं।
धूप में खड़ा हुआ आज है वही ‘अरुण’
जिसने औरों के लिए पेड़ ख़ुद लगाये हैं।
- अरुण तिवारी "अनजान"
बढ़िया।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-02-2018) को ) "धारण त्रिशूल कर दुर्गा बन" (चर्चा अंक-2893) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-02-2018) को <a
href="http://charchamanch
मतलबी जहाँ है और हम हैं खुदरंग।
ReplyDeleteउम्दा गजल