हुई सुबह
मुट्ठी में भर लेंगे
नया आकाश ।
उषा किरण
होता नव सृजन
मन प्रसन्न ।
मुझमें बेटी
सदा प्रतिबिंबित
छवि इंगित ।
तपती धूप
वृक्ष की घनी छाँव
देती ठंडक ।
सजाई अर्थी
राग ,द्वेष व दंभ/
सधा जीवन ।
प्रीत के रंग
अपनों का हो संग
मन मृदंग।
-श्रीमती मधु सिंघी,
हाइकु कवयित्री
प्रस्तुति:- प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
सुंदर हाइकु अध्यात्म रंग से आच्छादित।
ReplyDeleteबढ़िया हाइकु
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