Wednesday, February 14, 2018

नदी को सागर मिला नहीं है.....निर्मला कपिला

गिला-औ-शिकवा रहा नहीं है
मलाल फिर भी गया नहीं है

तलाश उसकी हुई न पूरी
नदी को सागर मिला नहीं है

बुला के मुझको किया जो रुसवा
ये बज़्म की तो अदा नहीं है

ये तो मुहब्बत लगी अलामत
अलील दिल की दवा नहीं है

गुलों के जैसे जिओ खुशी से
के ज़िंदगी का पता नहीं है

ग़रूर दौलत प किस लिए हो
ये धन किसी का सगा नहीं है

शरर ये नफरत का किसने फेंका
जो आज तक भी बुझा नहीं है

किसी को शीशा दिखा रहा जो
वो दूध का खुद धुला नहीं है

उलाहना दूं उसे जो निर्मल
यही तो मुझसे हुया नहीं है

- निर्मला कपिला

7 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना

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  2. सरस सुक्तियों सा काव्य ।

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  3. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरूवार 15 फरवरी 2018 को प्रकाशनार्थ 944 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  4. बहुत सुंदर रचना

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  5. बहुत खूब !!!!!!!!!! आदरणीय निर्मला जी -- बहुत अच्छी गजल लिखी आपने | सादर --------

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