बेटी बाबुल के दिल का टुकड़ा भैया की मुस्कान होती है,
आँगन की चिड़िया माँ की परछाईं घर की शान होती है !
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खुशियों के पँख लगे होते हैं उसको घर के हर कोने में
रखती है अपनी निशानियां जो उसकी पहचान होती हैं !
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माँ की दुलारी पापा की लाडली भैया की नखरीली वो
रूठती झगड़ती इतराती हुई करुणा की खान होती है !
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भाई की राखी दूज का टीका मीलों दूर होकर भी जब
वो सजल नयनों से भेजकर हर्षाये तो सम्मान होती है !
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संध्या वंदन कर एक दिया आँगन की तुलसी पे रखती,
मानो ना मानो बेटी तो सदा दिल का अरमान होती है !
- सीमा 'सदा' सिंघल
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी सी रचना
ReplyDeleteआभार आपका ....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-02-2017) को "त्योहारों की रीत" (चर्चा अंक-2890) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'