Thursday, February 15, 2018

इश्क-ए - रवायत भारी है...डॉ. इन्दिरा गुप्ता

रात अकेली चाँद अकेला 
गुजर रहा हें  सन्नाटा 
चँद्र किरण जल बीच समाई 
जल उतरा जो चाँद ज़रा सा ! 
लहर चंदनिया  झुला रही है 
एहसास -ए - दिल भी डोल रहा 
चिर - चिर  झींगुर सा सन्नाटा 
बन्द द्वार सब खोल रहा ! 
तट - तरनी जल शाँत बह रहा 
चीड़ वृक्ष है दम साधे 
लो आज भी रजनी चल दी 
लिये अरमान प्यासे - प्यासे ! 
रोज आस बँधती टूटती 
सिलसिला आज भी जारी हें 
नहीँ आस छूटती फिर भी 
इश्क-ए - रवायत  भारी  है ! 

-डॉ. इन्दिरा गुप्ता✍

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-02-2017) को "दिवस बढ़े हैं शीत घटा है" (चर्चा अंक-2882) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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