Saturday, February 3, 2018

क्योंकि मन जिंदा है.....स्मृति आदित्य


मन परिंदा है 
रूठता है 
उड़ता है 
उड़ता चला जाता है 
दूर..कहीं दूर 
फिर रूकता है 
ठहरता है, सोचता है, आकुल हो उठता है 
नहीं मानता 
और लौट आता है 
फिर... 
फिर उसी शाख पर 
जिस पर विश्वास के तिनकों से बुना 
हमारा घरौंदा है
मन परिंदा है 
लौट-लौट कर आएगा तुम्हारे पास 
तुम्हारे लिए...क्योंकि मन जिंदा है!

- स्मृति आदित्य

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-02-2018) को "अपने सढ़सठ साल" (चर्चा अंक-2869) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह!!!
    बहुत सुंदर रचना

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. बहुत ही संवेदनशील रचना है

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