Monday, February 26, 2018

चुप................प्रियंका सिंह

मैं 
चुप से सुनती 
चुप से कहती और 
चुप सी ही रहती हूँ 

मेरे 
आप-पास भी 
चुप रहता है 
चुप ही कहता है और 
चुप सुनता भी है 

अपने 
अपनों में सभी 
चुप से हैं 
चुप लिए बैठे हैं और 
चुप से सोये भी रहते हैं 

मुझसे 
जो मिले वो भी 
चुप से मिले 
चुप सा साथ निभाया और 
चुप से चल दिए 

मेरी 
ज़िन्दगी लगता है 
चुप साथ बँधी 
चुप संग मिली और 
चुप के लिए ही गुज़री जाती है 

कितनी 
गहरी, लम्बी और 
ठहरी सी है ये 
मेरी 
चुप की दास्ताँ........

-प्रियंका सिंह

6 comments:

  1. आह वेदनापूर्ण यह चुप्पी आँखें नम कर गई।

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  2. एक अलग विषय पर छुअन

    एक अलग चीज को आवाज

    आवाज भी किसी एक चुपी की।

    कमाल

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-02-2017) को "नागिन इतनी ख़ूबसूरत होती है क्या" (चर्चा अंक-2894) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. वाह
    ये चुप चुप सी चुप की कहानी
    चुप्पी का है अद्भुत है जुबानी
    चुप रहती चुप्पी कहती है
    चुप्पी सुनना तो धीरज रखना ।

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