Friday, February 16, 2018

आँकड़े......के.पी. सक्सेना ’दूसरे’


मुक्तक :
कल मरे कुछ
और कल मर जाएँगे कुछ
चल पड़ा है 
रोज़ का यह सिलसिला
...............
आँकड़े
बस बाँचते हैं
हो इकाई या दहाई
सैकड़ा या सैंकड़ों
हो गयी पहचान गायब
बस लाश कितनी, ये गिनो

क्या दुकालू
क्या समारु
और फुलबतिया कहाँ
बाँट लेंगे
सब उन्हें ऐसे घरों में
घट गए
कुछ नाम जिनसे।
-के.पी. सक्सेना ’दूसरे’

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-02-2017) को "कूटनीति की बात" (चर्चा अंक-2883) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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