गुफ़्तगू इससे भी करा कीजे
दोस्त है दिल ना यूँ डरा कीजे
दर्द सह कर के मुस्कुराना है
आप घबरा के मत मरा कीजे
जब सकूँ सा कभी लगे दिल में
तब दबी चोट को हरा कीजे
याद आना है ख़ूब आओ मगर
मेरी आँखों से ना झरा कीजे
क्या है इन्साफ़ बस सजाऐं ही
कभी खोटे को भी खरा कीजे
नहीं आसान थामना फिर भी
हाथ उसकी तरफ जरा कीजे
वो है खुशबू ये जान लो नीरज
उसको साँसों में बस भरा कीजे
-नीरज गोस्वामी
वाह! बेहतरीन उम्दा।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-02-2018) को "चोरों से कैसे करें, अपना यहाँ बचाव" (चर्चा अंक-2875) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
याद आना है ख़ूब आओ मगर
ReplyDeleteमेरी आँखों से ना झरा कीजे
गज़ब लेखनी भाई जी !
वाह!!! बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
वाह
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