चला है साथ कभी बादलों में आया है
ये चाँद है कि मेरे साथ तेरा साया है।
ये दर्द मेरा है, जो पत्तियों से टपका है
ये रंग तेरा है, फूलों ने जो चुराया है।
ये भीगी शाम, उदासी, धुँआ, धुँआ, मंज़र
उदास गीत कहाँ, वादियों ने गाया है।
ये हौंसले की कमी थी कि सर झुकाये हुए
वो खाली हाथ समन्दर से लौट आया है।
सिसक सिसक के जला है मगर जला तो सही
मेरे चराग़ को आँधी ने आजमाया है।
-शकुन्तला श्रीवास्तव
सुन्दर
ReplyDeleteवाह क्या बात है...बहुत बढ़िया... लाजवाब
ReplyDeleteवाह वाह बहुत उम्दा।
ReplyDeleteये हौंसले की कमी थी कि सर झुकाये हुए
ReplyDeleteवो खाली हाथ समन्दर से लौट आया है।
सिसक सिसक के जला है मगर जला तो सही
मेरे चराग़ को आँधी ने आजमाया है।--
हर शेर लाजवाब और अर्थपूर्ण | हार्दिक शुभकामनायें आदरणीया |