Thursday, February 1, 2018

एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला बचपन....कुसुम कोठारी

ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।

सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना
जिसके तले मस्ती में झूमता एक भोला बचपन ।

सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के 
वो जादुई रंगीन परियां जो डोलती इधर उधर।

मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर 
एक झूठा सच, धरती आसमान है मिलते दूर ।

संसार छोटा सा लगता ख्याली घोड़े का था सफर 
एक रात के बादशाह बनते रहे संवर संवर ।

दादी की कहानियों मे नानी थी चांद के अंदर 
सच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर ।

वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।

एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला  बचपन। 

-कुसुम कोठारी।

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