Monday, June 8, 2020

क़त्ल का कैसा है ...डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी


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दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
दर्द बढ़ता ही गया जख़्म कहीं था भी नहीं ।।

कास वो साथ किसी का तो निभाया होता ।
क्या भरोसा करें जो शख्स किसी का भी नहीं ।।

क़त्ल का कैसा है अंदाज़ ये क़ातिल जाने ।
कोई दहशत भी नहीं है कोई चर्चा भी नहीं ।।

मैकदे में हैं तेरे रिंद तो ऐसे साकी ।
जाम पीते भी नही और कोई तौबा भी नहीं ।।

सोचते रह गए इज़हारे मुहब्बत होगी ।
काम आसां है मगर आपसे होता भी नहीं ।।

वो बदल जाएंगे इकदिन किसी मौसम की तरह।
इश्क से पहले कभी हमने ये सोचा भी नहीं ।।

रूठ कर जाने की फ़ितरत है पुरानी उसकी ।
मैंने रोका भी नहीं और वो रुकता भी नहीं ।।

कोशिशें कुछ तो ज़रा कीजिए अपनी साहब ।
मंजिलें ख़ुद ही चली आएंगी ऐसा भी नहीं ।।

हिज्र के बाद तो जिंदा रही इतनी सी ख़लिश ।
हाले दिल आपने मेरा कभी पूछा भी नहीं ।।

-डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 08 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बेहद सुंदर प्रस्तुति

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  3. आ0 यशोदा अग्रवाल जी सप्रेम आभार

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  4. दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
    दर्द बढ़ता ही गया जख़्म कहीं था भी नहीं ।।

    सुंदर प्रस्तुति

    सभी शेर उत्तम

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