Friday, February 7, 2020

सूखा रहा मन का एक कोना ..रामकृपा

बरसात का एक दिन.......!
एक औरत जल्दी जल्दी छत की सीढियाँ चढ रही है
बुदबुदाये जा रही है
अभी तो कपडे सूखने डाले थे
सारे कपडे गीले हो गये
इसे भी अभी आना था !
...
एक औरत कमरे के अंदर से चिल्ला रही है
कोई सुन रहा है क्या
बच्चों को गली में से बुला लो
न जाने कब से भीग रहे हैं
जुकाम लग जायेगा बुखार हो जायेगा !
...
एक औरत स्कूल बस की तरफ तेजी से बढे जा रही है
बडबडा रही है
आज ही छतरी नहीं दी
कहीं पहुँचने में देर ना हो जाये
बच्चे भीग न जायें !
...
एक औरत सडक पर लम्बे लम्बे डग भर रही है
पूरी तरह भीगी, लोगों की नजरों से खुद को बचाती
मन ही मन कुढ रही है
बाजार का थोडा ही काम तो बचा था
कुछ देर और रूककर बरस जाती !
...
एक औरत रसोई में जल्दी जल्दी हाथ चला रही है
सबकी मौसमी फरमाईशें पूरी कर रही है
चिडचिडा रही है
काम में काम बढा दिया
आज ही बरसना था इसे !
...
जाने कैसी औरतें हैं ये
पल भर ठहरकर बरसात की आवाज को सुन ही नहीं रहीं
कभी बरसात से अपने दर्द को साझा ही नहीं कर रहीं
इन्हें अपने दिल की बंजर होती जमीं दिख ही नहीं रही !

जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी
पहिये सी घूमी
जिन्दगी की लम्बी सडक पर सरपट दौडे चली जा रहीं हैं !
....
बरसात अभी भी हो रही है
बूंदों के घुँघरू अब भी बज रहे हैं
गली शहर घर आँगन सब भीग रहे हैं
पर औरत के मन का एक कोना अब भी सूखा पडा है
प्रेम की कोई बूंद यहाँ नहीं गिरी है !!

-रामकृपा

5 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा आपने कि बाहर कितनी भी बारिश हो लेकिन ज्यादातर औरते प्रेम की एक बुंद के लिए तरसती रहती हैं।

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  2. स्त्रियों के पास समय कहाँ है कि कुछ पल रुककर बरसात की खूबसूरती को निहार लें....और रही बात प्रेम की, तो -
    उम्रे दराज़ माँगकर लाए थे चार दिन,
    दो आरजू में कट गए दो इंतजार में !!!
    यह कविता लिखने वाले कवि ने स्त्री की दिनचर्या और मनोविज्ञान को गहराई से समझा है। रचना साझा करने हेतु आभार !

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  3. जाने कैसी औरतें हैं ये
    पल भर ठहरकर बरसात की आवाज को सुन ही नहीं रहीं
    कभी बरसात से अपने दर्द को साझा ही नहीं कर रहीं
    इन्हें अपने दिल की बंजर होती जमीं दिख ही नहीं रही !
    बहुत सटीक.....
    वाह!!!!

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  4. कलेजा बींध गई कविता
    कुछ ऐसा कह गई कविता

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