एक ज़िंदा भारतीय
क्यों दिखती नहीं
भूख से कुलबुलाती
उसकी अतड़ियाँ ..!
उसकी आशायें ,
उसकी हसरतें ,
दिखती कब हैं
जब .....?
वो मर जाता है !
लोगों की आँखों पर
चढ़ जाता है ..
एक अंजुरीभर चावल के बदले ..!
घर बोरों से भर जाता है ...
टूटी खाट आँगन में सज ज़ाती है
बन सूर्खियां अख़बारों की
बाक़ियों की जुगाड़ कर जाता है !!
लेखिका परिचय - अनीता लागुरी "अनु"
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार आपका..
ReplyDeleteसादर..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 27 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह!!अनु ,बहुत ही मर्मस्पर्शी !
ReplyDeleteक्यों नहीं दिखता
एक जिंदा भारतीय
क्यों नहीं दिखती
भूख से कुलबुलाती
उसकी अँतड़िया .....
अद्भुत !!
फुरसत कहाँ.किसी को ,भूखे की अँतड़िया देखने की
सबको अपना घर भरना है यहाँ ..।
. क्षमा चाहूंगी दी अभी देखा मैंने मुझे पता ही नहीं था क्या आपने मेरी कविता को अपनी पटल पर डाला है बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
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