अपने सारे उसूलों को
तिजोरी में बंद कर
घर से खाली हाथ निकलता हूँ
और देखता हूँ कि अब मैं
भीड़ में अकेला नहीं हूँ,
अब मुझे
दुनियादारी का कुछ सामान
बाज़ार से खरीदना होगा
और अपने अंतर को
उससे सजाना होगा,
या फिर
भीड़ में अकेले चलने का
साहस जुटाना होगा !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.02.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3617 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
दुनियादारी का बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत की है आपने बहुत-बहुत आभार
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