सिगरेट के धुये मे,
कुछ शक्ले दिखती है,
मुझसे बाते करती हुयी,
कुछ चुप चाप.....
और सिगरेट जलती जाती है...
जैसे वक्त जल रहा हो,
गये वक्त को मै,
ऎश की तरह झाड देता हू
और वो माटी के साथ मिल जाता है,
खो जाता है उसी मे कही......
बस होठो पर एक रुमानी
अहसास होता है,
कहते है कि वक्त को जलाने का भी
अपना ही मज़ा है......
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 18 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसच जलती सिगरेट के धुएं के साथ वक्त भी जलता है और फिर एक दिन जल्दी से दोनों धुआँ-धुआँ हो जाते हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति