एक आम गृहणी का, एक आम दिन.......
कभी प्लेट और कभी
थाली में,
कभी चेन और कभी
बाली में,
कभी 'स्वीपर' में,कभी
माली में,
तो.....कभी चाय की
प्याली में.
कभी परदों में ,कभी
कभी नाली में,कभी
फूलों में, कभी
डाली में
या फिर......
खिड़की की जाली में.
कभी मिर्च-मसाले,
नमक-तेल,
चावल,रोटी की
टोली में,
कभी स्कूलों की
भाग-दौड़,
'कालेज' की हँसी
ठिठोली में.
कभी दही,दूध और
छाली में,कभी
भीड़
और कभी ख़ाली में,
कभी प्रत्युष की
उजियाली में,
कभी गोधूली की
लाली में........
वाह
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteमैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
ReplyDeleteरोमांटिक शायरी कलेक्शन
बस यही है एक आम गृहिणी का हर आम दिन.
ReplyDeleteबहुत सादगी और ख़ूबसूरती से एक स्त्री के चरित्र को उकेरा है आपने .बधाइयाँ