आज आपको एक ग़ज़ल पढ़वा रहे हैं
फेसबुक से उठा लाए हैं हम
आपको ज़रूर पसंद आएगी
फेसबुक से उठा लाए हैं हम
आपको ज़रूर पसंद आएगी
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वादा किया है जो भी निभाएंगे रात दिन
हर रस्में वफ़ादारी दिखाएँगे रात दिन।
नज़रों से तेरी आँख का काजल निकाल कर,
चेहरे को अपने ख़ूब सजाएँगे रात दिन।
हर इक क़दम पे रूसवा हुए ठोकरें मिलीं,
फिर भी तेरी गली में ही आएंगे रात दिन।
आग़ोशे एहतिजाज के पाले हुए है हम,
ज़ुल्मों सितम को आँख दिखाएँगे रात दिन।
मंज़िल मिलेगी मुझ को भरोसा रहा सदा,
नारा - ए इंक़लाब लगाएंगे रात दिन।
इक हाँ के इंतिज़ार में सदियां गुज़र गईं,
मिलते जवाब नाज़ उठाएंगे रात दिन।
बाद-ए-सबा के आते अंधेरा भी जायेगा,
फिर अज़्म का चराग़ जलाएंगे रात दिन।
जो कुछ दिया है उस के लिए शुक्रिया जनाब,
हर ज़ख़्में दिल सभी को दिखाएँगे रात दिन।
' मेंहदी ' उदास न हो गुलूकार हर तरफ़,
नग़में तुम्हारे झूम के गाएंगे रात दिन।
-ज़नाब मेंहदी अब्बास रिज़वी
" मेंहदी हल्लौरी "
वाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब गजल...।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 22 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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