बरसात का एक दिन.......!
एक औरत जल्दी जल्दी छत की सीढियाँ चढ रही है
बुदबुदाये जा रही है
अभी तो कपडे सूखने डाले थे
सारे कपडे गीले हो गये
इसे भी अभी आना था !
...
एक औरत कमरे के अंदर से चिल्ला रही है
कोई सुन रहा है क्या
बच्चों को गली में से बुला लो
न जाने कब से भीग रहे हैं
जुकाम लग जायेगा बुखार हो जायेगा !
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एक औरत स्कूल बस की तरफ तेजी से बढे जा रही है
बडबडा रही है
आज ही छतरी नहीं दी
कहीं पहुँचने में देर ना हो जाये
बच्चे भीग न जायें !
...
एक औरत सडक पर लम्बे लम्बे डग भर रही है
पूरी तरह भीगी, लोगों की नजरों से खुद को बचाती
मन ही मन कुढ रही है
बाजार का थोडा ही काम तो बचा था
कुछ देर और रूककर बरस जाती !
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एक औरत रसोई में जल्दी जल्दी हाथ चला रही है
सबकी मौसमी फरमाईशें पूरी कर रही है
चिडचिडा रही है
काम में काम बढा दिया
आज ही बरसना था इसे !
...
जाने कैसी औरतें हैं ये
पल भर ठहरकर बरसात की आवाज को सुन ही नहीं रहीं
कभी बरसात से अपने दर्द को साझा ही नहीं कर रहीं
इन्हें अपने दिल की बंजर होती जमीं दिख ही नहीं रही !
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी
पहिये सी घूमी
जिन्दगी की लम्बी सडक पर सरपट दौडे चली जा रहीं हैं !
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बरसात अभी भी हो रही है
बूंदों के घुँघरू अब भी बज रहे हैं
गली शहर घर आँगन सब भीग रहे हैं
पर औरत के मन का एक कोना अब भी सूखा पडा है
प्रेम की कोई बूंद यहाँ नहीं गिरी है !!
-रामकृपा
बिल्कुल सही कहा आपने कि बाहर कितनी भी बारिश हो लेकिन ज्यादातर औरते प्रेम की एक बुंद के लिए तरसती रहती हैं।
ReplyDeleteस्त्रियों के पास समय कहाँ है कि कुछ पल रुककर बरसात की खूबसूरती को निहार लें....और रही बात प्रेम की, तो -
ReplyDeleteउम्रे दराज़ माँगकर लाए थे चार दिन,
दो आरजू में कट गए दो इंतजार में !!!
यह कविता लिखने वाले कवि ने स्त्री की दिनचर्या और मनोविज्ञान को गहराई से समझा है। रचना साझा करने हेतु आभार !
जाने कैसी औरतें हैं ये
ReplyDeleteपल भर ठहरकर बरसात की आवाज को सुन ही नहीं रहीं
कभी बरसात से अपने दर्द को साझा ही नहीं कर रहीं
इन्हें अपने दिल की बंजर होती जमीं दिख ही नहीं रही !
बहुत सटीक.....
वाह!!!!
Wah!! Ekdum sach hai!
ReplyDeleteकलेजा बींध गई कविता
ReplyDeleteकुछ ऐसा कह गई कविता