भाव खदबदाहट, झुलसाते भाप।
जग के मायावी वीथियों में गूँजित
चीन्हे-अनचीन्हे असंख्य पदचाप
तम की गहनता पर खिलखिलाते,
तप तारों का,भोर के लिए मंत्रजाप।
मूक परिवर्तन अविराम क्षण प्रतिक्षण,
गतिमान काल का निस्पृह पदचाप
ज्ञान-अज्ञान,जड़-चेतन के गूढ़ प्रश्न,
ब्रह्मांड में स्पंदित नैसर्गिक आलाप।
निर्माण के संग विनाश का शाप,
जीवन लाती है मृत्यु की पदचाप।
सृष्टि के कण-कण की चित्रकारी,
धरा-प्रकृति , ब्रह्म जीव की छाप।
हे कवि!तुम प्रतीक हो उजास की,
लिखो निराशा में आशा की पदचाप।
-श्वेता
बहुत ही सार्थक और सुंदर सृजन पदचाप सिर्फ पांवों की कंहा होती है होती है हर शै में हर कलाप में बस दिखती अररिया की प्रतिक्रिया में ।
ReplyDeleteआपने पदचाप पर बहुत ही विस्तृत दृष्टिकोण अंकित किया है श्वेता सुंदर अभिनव रचना।
अररिया को क्रिया पढ़ें।
Deleteवाह!!श्वेता ,पदचाप का कितना सुंदर विश्लेषण !!👍अद्भुत !!
ReplyDeleteज्ञान-अज्ञान,जड़-चेतन के गूढ़ प्रश्न,
ReplyDeleteब्रह्मांड में स्पंदित नैसर्गिक आलाप।
निर्माण के संग विनाश का शाप,
जीवन लाती है मृत्यु की पदचाप
गहरी चिंतन ,बहुत ही सुंदर सृजन श्वेता जी
लाजवाब।
ReplyDeleteप्रिय श्वेता, गहन चिंतन मनन के बिना,माँ शारदे के विशेष आशीष के बिना ऐसी अद्भुत रचना का सृजन संभव नहीं।
ReplyDelete"जग के मायावी वीथियों में गूँजित
चीन्हे-अनचीन्हे असंख्य पदचाप"
गज़ब की पंक्तियाँ !
हे कवि!तुम प्रतीक हो उजास की,
ReplyDeleteलिखो निराशा में आशा की पदचाप।
वाह!!!!
आशा की पदचाप
बहुत ही लाजवाब सृजन हमेशा की तरह....