जब सारे रास्ते बंद हो जायें, कोई राह नहीं सूझे
मन में दबी वेदना, कलम से, आंसू छलकाती है
कभी रिश्तों की मजबूरी, कभी उमर के बीच दूरी
अपनी जुबान बंद रखने को, मजबूर हो जाते है
अदब की मांग और कभी, तहज़ीब झुका देती है
कभी वक़्त गलत मान, खुद ही चुप रह जाते हैं
कुछ, औरों की ख़ुशी जलाके, घर रौशन करते हैं
दिखाते अपना हैं, पर मन से हमेशा दूर रखते हैं
चुप्पी साध अपनी खामीयों पर, आवरण ढकते हैं
अपनी बातें मनवाने को, नित नये ढोंग रचते हैं
लेकिन जब कभी, किसी भ्रम का भांडा फूटता है
अचानक आई सुनामी से सबके तोते उड़ जाते हैं
शांति से चलती ज़िंदगी से किस्मत रूठ जाती है
हकीकत सामने आते ही, सभी बेहाल हो जाते हैं
असहनीय स्थिति और मुमकिन नहीं काबू रखना
कवि वेदना व्यक्त करने को कलम पकड़ लेते हैं
पीड़ा ऐसे अंदाज़ से अपने अंजाम तक पहुँचती है
शब्द इंसानों को नहीं, कागजों में दम तोड़ देते हैं
“योगी” वेदना का कलम के साथ अजब संयोग है
कहीं कोई आहत नहीं, गुबार भी निकल जाता है।
-योगेश सुहागवती गोयल
कलम बहुत खूब चली है
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