हर गरीब
बेबस जनता के
बहते हुए
आँसुओं को
पोछती कलम,
बेजुबान की
जुबान बनकर
उसके हकों को
दिलाती कलम।
छोटी सी छोटी
कमजोरियों को
बड़ी सी बड़ी
खूबियों को
उजागर करती कलम,
ज़िन्दगी के
धूमिल
हर मोड़ पर
साथ देती कलम।
प्रेम की
भाषा भी लिखती
दुखित के
दुख को परखती,
द्वेष का सैलाब
मिटाकर
शिष्टता लाती कलम।
दूर करती
नीचता को
नष्ट करती
काले बाज़ार को,
देश के हित
आग बनकर
क्रान्ति को लाती कलम।
पूंजीपति की
कटुरता को
देखकर
उनके कहर को
दहक उठती
शोला बनकर,
श्रमिक जन को
सन्देश देती
हौंसला बनकर कलम।
मुल्क के हित
सैनिकों में
ओज का संचार
करती,
पाठ सच्चाई का
सिखाकर
कोरे कागद पर
एक नया
इतिहास लिखकर
सद्भावना लाती कलम।
-ओम प्रकाश अत्रि
सुंदर लेखन
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति है
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.02.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3610 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुन्दर कृति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर अतिसुन्दर!
ReplyDeleteबहुत खूब .....
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