अंतर्मन के किसी कोने में
एक आत्मा उर भी है
जो आकाश की असीमित
उचाईयों को छूना चाहती है
जो पंख लगा कर उड़ने को
व्याकुल है
प्यार की गहराईयों में उतर कर
पवित्रता के मोती चुनना चाहती है
जो जीवन की गंगा संग
मंत्रमुग्ध हो बहना चाहती है
फिर क्यूँ नहीं उसे उड़ने दिया जाता
क्यों नहीं प्यार की गंगा में बहने
दिया जाता
क्यूंकि शायद यही दुनिया की रस्मे हैं
हर आत्मा को बेड़ियों में जकड़
दिया जाता है
और तब तक तड़पाया जाता है
जब तक अरमानो की वो आत्मा
दम तोड़ नहीं देती
बंदी जीवन बड़ा मुस्किल है
ReplyDeleteदरअसल ये जीवन होता ही नहीं ये दासता होती है, जो बितायी जाती है.
पितृसतात्मक ने स्त्रियों की यही दशा कर रखी है.
उम्दा व सच उगलती रचना.
आइयेगा- प्रार्थना
नारी जीवन की व्यथा को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया हैं आपने।
ReplyDeleteआपकी यह कविता दिल में उतर गई। सादर प्रणाम।
ReplyDeleteसुंदर एवं प्रभावपूर्ण !
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