सुबह की ताजी हवा थी महकी
कोयल कुहू - कुहू बोल रही थी....
घर के आँगन में छोटी सी सोनल
अलसाई आँखें खोल रही थी....
चीं-चीं कर कुछ नन्ही चिड़ियां
सोनल के निकट आई......
सूखी चोंच उदास थी आँखें
धीरे से वे फुसफुसाई....
सुनो सखी ! कुछ मदद करोगी ?
छत पर थोड़ा नीर रखोगी ?
बढ़ रही अब तपिश धरा पर,
सूख गये हैं सब नदी-नाले
प्यासे हैं पानी को तरसते,
हम अम्बर में उड़ने वाले.....
तुम पंखे ,कूलर, ए.सी. में रहते
हम सूरज दादा का गुस्सा सहते
झुलस रहे हैं, हमें बचालो !
छत पर थोड़ा पानी तो डालो !!
जेठ जो आया तपिश बढ गयी
बिन पानी प्यासी हम रह गयी....
सुनकर सोनल को तरस आ गया
चिड़ियों का दुख दिल में छा गया
अब सोनल सुबह सवेरे उठकर
चौड़े बर्तन में पानी भरकर,
साथ में दाना छत पर रखती है....
चिड़ियों का दुख कम करती है ।
मित्रों से भी विनय करती सोनल
आप भी रखना छत पर थोड़ा जल ।।
लेखिका परिचय - सुधा देवरानी
प्रशंसनीय
ReplyDeleteधरोहर के पटल पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार संजय जी !
ReplyDeleteलाजवाब सृजन सुधा जी! गर्मी आ रही है पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों को दर्शाता सुंदर सृजन।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना 👌👌
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