प्रतिभा मंच
फिलबदीह 1018
मापनी ...
2122..1212..22
वस्ल की रात आज आई है
बज उठीं है ये चूड़ियां शायद..।।
आग दिल में लगी बुझे कैसे
उठ रहा इस लिये धुआं शायद।।
उनके आने से बहार भी आई
खूब मचले ये शोखियाँ शायद।।
मतला...
बढ़ रही है ये दूरियाँ शायद
काम आतीं मजबूरियों शायद।।
दिल की बातें नज़र से कहती हैं
बात कह दे खामोशियां शायद।।
- अरुणिमा सक्सेना
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 23 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत उम्दा सृजन।
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