Saturday, November 10, 2018

छठ पर्व का उत्तर भारत में उल्लास

कार्तिक शुक्ल की षष्ठी के पावन उत्सव, 
छठ पर्व का उत्तर भारत में उल्लास!  

पटना के घाट पर हमहू अर्जिया देबइ, हे छठी मैया 
हम ना जाईब दूसर घाट देखब ये छठी मैया!! 
ऐसे ही अन्य भक्ति गीतों के साथ आरम्भ हो चुका है उत्तर और पूर्व भारत के कई हिस्सों में छठ पूजा का खुमार। हर साल दिवाली का पवित्र त्यौहार ख़त्म होते ही एक हफ्ते बाद शुरू होता है छठ पूजा का पवित्र त्यौहार जिसे पूरे रीति रिवाजों के साथ भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है, खासकर कि बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में। छठ पर्व को नेपाल के भी कई हिस्सों में पूरी भक्ति भावना के साथ मनाया जाता है। 
 छठ पूजा या छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना 
के इस अनुपम लोकपर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंवी द्वारा भी मनाते हुए देखा गया है। 
आज की तारीख में धीरे-धीरे यह पर्व भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर मे प्रचलित व प्रसिद्ध हो गया है। बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखण्ड में इस पर्व की एक अलग ही महत्ता है।अन्य त्यौहारों के साथ-साथ छठ पूजा की भी तैयारियां साल के शुरुआत से ही होने लगती है। दिवाली का पावन अवसर ख़त्म होते ही लोग छठ पूजा की तैयारी में लग जाते हैं। नदी के घाटों को कई संस्थानों व सरकारी कर्मचारियों द्वारा साफ़ कर पूजा के लिए तैयार किया जाता है। छठ पूजा का यह रंगीन त्यौहार 4 दिनों तक चलता है। चलिए आज हम इस पावन पर्व की कुछ खूबसूरत तस्वीरों के साथ जानते हैं इसकी धार्मिक महत्ता को! 
छठ पूजा का नाम कैसे पड़ा?
छठ पूजा का नाम कैसे पड़ा? 
छठ पर्व, छठ या षष्ठी नाम से बना है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत हो गया। 
लोक आस्था का पवित्र त्यौहार  
लोक आस्था का पवित्र त्यौहार 
छठ पर्व सूर्योपासना का प्रसिद्द पर्व है। 
इस पर्व को दो बार मनाया जाता है, पहले 
चैत के महीने में और दूसरी बार कार्तिक के महीने में। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्तिके 
लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और
पुरुष दोनों ही सामान रूप से इस पर्व को मानते हैं। 
इस दिन सूर्य देवता के साथ-साथ षष्ठी देवी, 
यानि छठी मैया की भी पूजा की जाती है। 
ये लोक के समस्त बालकों की रक्षिका देवी है। 
प्रकृति का छठा अंश होने के कारण 
इनका एक नाम "षष्ठी" है।  

छठ पूजा की कथा छठ पूजा से सम्बंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथानुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में 
हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी 
हुईं तथा पांडवोंको राजपाट वापस मिल गया। छठ पर्वकी परंपरा 
में बहुत ही गहरा विज्ञान भी छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) 
एक विशेष खगोलीय अवसर है। 
छठ पूजा की कथा


छठ पूजा की कथा 
दूसरी कथानुसार, प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र प्रियव्रत के कोई संतान न थी। एक बार महाराज ने महर्षि कश्यप से दुख व्यक्त कर पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। महर्षि ने पुत्रेष्टि यज्ञ का परामर्श दिया। यज्ञ के फलस्वरूप महारानी को पुत्र जन्म हुआ, किंतु वह शिशु मृत था। पूरे नगर में शोक व्याप्त हो गया। महाराज शिशु के मृत शरीर को अपने वक्ष से लगाये प्रलाप कर रहे थे, तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। सभी ने देखा आकाश से एक विमान पृथ्वी पर आ रहा है। विमान में एक ज्योर्तिमय दिव्याकृति नारी बैठी हुई थी। राजा द्वारा स्तुति करने पर देवी ने कहा- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूँ। मैं विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूँ और अपुत्रों को पुत्र प्रदान करती हूँ। देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया जिससे वह बालक जीवित हो उठा। महाराज की प्रसन्नता की सीमा न रही। वे अनेक प्रकार से षष्ठी देवी की स्तुति करने लगे। राज्य में प्रति मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी को षष्ठी-महोत्सव के रूप में मनाया जाए-राजा ने ऐसी घोषणा करवा दी। 
छठ पूजा की विधी

छठ पूजा की विधी नहाय खाय: 
पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घर की सफाई कर, नहा धोकर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। भोजन में मुख्य रूप से कद्दू,चने की दाल और चावल बनाये जाते हैं।

छठ पूजा की विधी

छठ पूजा की विधी खरना: दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं, इसे खरना कहा जाता है। गुड़ की या गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर 
और रोटी प्रसाद स्वरुप बनाया जाता है और आस पास के लोगों को निमंत्रित कर उन्हें परोसा जाता है। इन सारी विधियों के दौरान साफ़ सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है।
छठ पूजा की विधी

छठ पूजा की विधी संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सुबह से छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है, जिसमें ठेकुआ, चावल के
 लड्डू ज़रूर ही होते हैं। दिन के 2 या 3 बजे से शाम के अर्घ्य के लिए घाट जाने की तयारी शुरू हो जाती है।


7 comments:

  1. साधुवाद! इस अनुपम लेख का!!!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-11-2018) को "छठ पूजा का महत्व" (चर्चा अंक-3152) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/11/2018 की बुलेटिन, " सेर पे सवा सेर - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. छठ पर्व की विस्तृत जानकारी और महत्ता बताता सुंदर आलेख।
    जानकारी के साथ सरस प्रवाह लिये अप्रतिम प्रस्तुति ।

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  5. छटपर्व की जानकारी देता हुआ बहुत सुन्दर लेख।

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  6. छठपर्व की जानकारी और महत्व दर्शाता अनुपम लेख ।

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