मुट्ठी भर दिए
मील भर अँधेरों को
चुनौती देते हैं
शान से हँसते हैं
और अँधेरे
मन मसोस कर रह जाते हैं
-:-
यही तो है
असली ताकत
उजाले की
जब नन्ही सी रेख
चीर देती है सीना अँधेरे का
और अँधेरे देखते रह जाते हैं
-:-
अँधेरों का हठ
तोड़ने की ठान ली जब
उस नन्हे से माटी के दिए ने
हवाएँ अाँधियाँ बन कर खूब चलीं
मगर वो जाँबाज डरा नहीं डटा रहा
और फिर उजाले के जशन में
अँधेरे अँधेरों मे खो गए !!
-मंजू मिश्रा
सुन्दर
ReplyDelete19 पंक्तियों की ये छोटी कविता उजाले की ताकत की सुंदर झलक दिखाती है!
ReplyDeletewww.ashtyaam.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-11-2018) को "ऐ मालिक तेरे बन्दे हम.... " (चर्चा अंक-3153) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत अच्छा लगा ये पढ कर।
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