Saturday, November 24, 2018

तन्हा चाँद जाने किस ख़्याल में गुम है.....श्वेता सिन्हा

सर्द रात की 
नम आँचल पर
धुँध में लिपटा
 तन्हा चाँद
जाने किस
ख़्याल में गुम है
झीनी चादर
बिखरी चाँदनी
लगता है 
किसी की तलाश है
नन्हा जुगनू 
छूकर पलकों को
देने लगा 
हसीं कोई ख़्वाब है
ठंडी हवाएँ भी
पगलाई जैसे
चूमकर  आयीं  
 तेरा हाथ हैं 
सिहरनें  तन की 
भली लग रहीं 
गरम दुशाला लिए 
कोई याद है
असर मौसम का 
या दिल मुस्काया
लगे फिर 
चढ़ा ख़ुमार है
सितारे आज 
बिखरने को आतुर
आग़ोश  में आज 
मदहोश रात है

 -श्वेता सिन्हा


13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 नवम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत बेहतरीन रचना आपकी👌👍

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  3. बहुत सुन्दर रचना श्वेता जी

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  4. श्वेता जी,
    इस खूबसूरत कविता के आगे की कल्पना करते हुए दिलो-दिमाग में सिर्फ़ एक नग्मा गूँज रहा है -
    'जिसका डर था, बेदर्दी, वही बात हो गयी.'

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    1. बिल्कुल। इसी डर से में मूक हूं।

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  5. वाह बहुत सुन्दर ये मधुर एहसासों का जादुई सिलसिला,
    मौसम को और रुमानी कर गया, और चाँद धुँध से निकल खिड़की मैं बैठ गया।
    ववव्हाह्!

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  6. झीनी चादर, बिखरी चाँदनी.सर्द मदहोश रात....
    वाह श्वेता जी बहुत ही रुमानी रचना।

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  7. जी बहुत सुंदर...रचना
    👌👌👌👌

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  8. सर्द रात में चाँद पर क्या खूब लिखा है आपने। ऐसा लग रहा कि मैं बालकनी में ही बैठकर ये सारा नजारा देख रहा हूँ।

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