Tuesday, November 27, 2018

अक्स तुम्हारा (हाइकु)............डॉ. सरस्वती माथुर

अक्स तुम्हारा (हाइकु)

1
मोर है बोले
मेघ के पट जब
गगन खोले 
2
वक्त तकली
देर तक कातती
मन की सुई l
3
यादों के हार
कौन टाँक के गया
मन के द्वार 
4
अक्स तुम्हारा
याद आ गया जब
मन क्यों रोया ?
5
यादों से अब
मेरा बंधक मन
रिहाई माँगे 
6
यादों की बाती
मन की चौखट को
रोशनी देती l
7
साँझ होते ही
आकाश से उतरी
धूप चिरैया 
8
धरा अँगना
चंचल बालक सी
चलती धूप 
9
भोर की धूप
जल दर्पण देख
सजाती रूप 
10
मेघ की बूँदें
धरा से मिल कर
मयूरी हुई

-डॉ. सरस्वती माथुर

3 comments:

  1. बहुत सुंदर।
    सधे हुए हाइकु।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-11-2018) को "नारी की कथा-व्यथा" (चर्चा अंक-3169) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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