Wednesday, November 14, 2018

लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे......श्वेता सिन्हा

अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे।
दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।।

पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम।
उम्रे-रवाँ के  ख़्वाब  सारे  डोलने  लगे।।

ख़ुश देखकर मुझे वो परेश़ान हो  गये।
फिर यूँ हुआ हर लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे।।

मैंने ज़रा-सी खोल दी  मुट्ठी भरी  हुई।
तश्ते-फ़लक पर  तारे रंग घोलने लगे।।

सिसकियाँ सुनता नहीं सूना हुआ शहर।
हँस के जो बात की तो लोग बोलने लगे।।

          #श्वेता सिन्हा


शिग़ाफ़े-लब=होंठ की दरार, उम्रे-रवाँ=बहती उम्र
तश्ते-फ़लक=आसमां की तश्तरी

17 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.11.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3156 में जाएगा

    धन्यवाद

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  2. वाह! सुभान अल्लाह!!!

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  3. बहुत खूबसूरत रचना

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌

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  5. बहुत ही सुंदर गजल प्रिय श्वेता ! उर्दू में भी बेहतरीन लेखन | हार्दिक शुभकामनायें |

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  6. Content is really very strong.
    "सिसकियाँ सुनता नहीं सूना हुआ शहर।
    हँस के जो बात की तो लोग बोलने लगे"

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  7. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल श्वेता जी

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  8. वाह ...हंस के की बात तो लोग बोलने लगे ..
    सत्य का उदघोष सखी श्वेता जी ...
    कुछ कहने पर तूफान उठा लेती है दुनियाँ

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  9. वाह बहुत उम्दा हर शेर कुछ कहता सा।
    लफ्जों की बेसकीमती जादुगरी।
    बेमिसाल ।

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  10. अप्रतिम सखी श्वेता

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  11. आज की हकीकत बयां करती हुई पंक्तियां

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  12. बहुत सन्दर रचना!!! आप आसमान की ऊँचाईयों छुए...आपके काव्य से मै संतुष्ठ हूँ!

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