Thursday, November 15, 2018

नदिया, ताल, समंदर आए....सिब्बन बैजी

कुछ फिकरे, कुछ पत्थर आए
सच कहकर हम जब घर आए

हमसे लोटा डोर मांगने
नदिया, ताल, समंदर आए

मलबों की मातमपुर्शी को
कितने ही बुलडोजर आए

शिकरों की दावत में अक्सर
तीतर, बया, कबूतर आए

'सिब्बन' की रातों से मिलने
सूफी शाह कलंदर आए.
-सिब्बन बैजी

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-11-2018) को "भारत विभाजन का उद्देश्य क्या था" (चर्चा अंक-3157) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete