छू लिया अलसाया तन
सर्द हवाओं की शरारतों से
तितली-सा फुदका मन
तन्वंगी कनक के बाणों से
कट गये कुहरीले पाश
बिखरी गंध शिराओं में
मधुवन में फैला मधुमास
मन मालिन्य धुल गया
झर-झर झरती निर्झरी
कस्तूरी-सा मन भरमाये
कंटीली बबूल छवि रसभरी
वनपंखी चीं-चीं बतियाये
लहरों पर गिरी चाँदी हार
अंबर के गुलाबी देह से फूट
अंकुराई धरा, जागा है संसार
-श्वेता
सादर आभार दी:)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteWowww yaar Bohat Badiya Article tha. Bohat ache se btaya ap ne. Thank you so much itna sab kuch btane ke liye aur sare doubts clear karne ke liye
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-11-2018) को "धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3146) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी