-१-
बैठा रहता
बहती धारा...
जिसको कविता कहता
दूर न पास
अंदर न बाहर
अपने आप में पूर्ण..
चलना कितना
दूर उसको ले आता
दरवाज़े के उस पार
आसमान नीलम-सा
मौन..
कविता गाता...।
-२-
प्रेम-कहानी
पढ़ने में
मुझें डर लगता...
क्योंकि
चमकते हुये तारों
और-
टूट के गिरते तारों में
फरक समझता हूँ...।
-३-
प्रेम...
कहते है ...
हर एक को होता और..
वह उड़ता रहता उसी
डगर में..
एक झलक ..देख
खिल उठता ..
इंद्रधनुष!
-पुरुषोत्तम व्यास
बेहतरीन..
ReplyDeleteसादर..
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-11-2018) को "महकता चमन है" (चर्चा अंक-3160) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
ReplyDeleteNice artical sir. Humne ek user supported bloge banaya hai jisme aap jitne comment karenge utne hi user apki website me comment karenge. Keep join early
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