Wednesday, November 21, 2018

तेरे नेह में....श्वेता सिन्हा

तुमसे मिलकर कौन सी बातें करनी थी मैं भूल गयी
शब्द चाँदनी बनके झर गये हृदय मालिनी फूल गयी

मोहनी फेरी कौन सी तुमने डोर न जाने कैसा बाँधा
तेरे सम्मोहन के मोह में सुध-बुध जग भी भूल गयी

मन उलझे मन सागर में लहरों ने लाँघें तटबंधों को
सारी उमर का जप-तप नियम पल-दो-पल में भूल गयी

बूँदे बरसी अमृत घुलकर संगीत शिला से फूट पड़े
कल-कल बहती रसधारा में रिसते घावों को भूल गयी

तुम साथ रहो तेरा साथ रहे बस इतना ही चाहूँ तुमसे
मन मंदिर के तुम ईश मेरे तेरे नेह में ईश को भूल गयी

-श्वेता सिन्हा

13 comments:

  1. वाह एक और लाजवाब रचना।

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  2. वाह!श्वेता , बहुत ही उम्दा !!

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.11.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3163 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व दूरदर्शन दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  5. इश्क़ जब हद से गुज़र जाता है तो आशिक़ को माशूक़ में ही ख़ुदा नज़र आता है.

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  6. प्रेम की पराकाष्ठा है यह श्वेता जी ! बहुत सुन्दर !

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌

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  8. वाह शानदार रचना

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  9. बूँदे बरसी अमृत घुलकर संगीत शिला से फूट पड़े
    कल-कल बहती रसधारा में रिसते घावों को भूल गयी
    सुन्दर पंक्तियाँ।और शानदार कृति।

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  10. तुम साथ रहो तेरा साथ रहे बस इतना ही चाहूँतुमसे
    मन मंदिर के तुम ईश मेरे तेरे नेह में ईश को भूल गयी
    बहुत ही लाजवाब कृति....
    वाह!!!

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  11. एक बुत बनाऊंगा और पूजा करूंगा ...
    वाह !श्रृंगार में अद्भुत समर्पण बहुत सुंदर गजल ।

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