खुशबू जैसे लोग मिले....गुलज़ार
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में
जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मेंं ।
-गुलज़ार
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteआभार सखि,
सादर...
गुलजार की बात ही अलहदा है।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 1.11.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3142 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteदो लफ़्ज़ों में गुलज़ार कितना कुछ कह जाते हैं!
ReplyDeleteवाह!!गुलजार साहब की तो बात ही निराली है !!
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteशाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल
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