फल्गु के तट पर
पिण्डदान के व़क्त पापा
बंद पलकों में आपके साथ
माँ का अक्स लिये
तर्पण की हथेलियों में
श्रद्धा के झिलमिलाते अश्कों के मध्य
मन हर बार
जाने-अंजाने अपराधों की
क्षमायाचना के साथ
पितरों का तर्पण करते हुये
नतमस्तक रहा !
...
पिण्डदान करते हुये
पापा आपके साथ
दादा का परदादा का
स्मरण तो किया ही
माँ के साथ
नानी और परनानी को
स्मरण करने पे
श्रद्धा के साथ गर्व भी हुआ
ये 'गया' धाम निश्चित ही
पूर्वजों के अतृप्त मन को
तृप्त करता होगा !!
...
रिश्तों की एक नदी
बहती है यहाँ अदृश्य होकर
जिसे अंजुरि में भरते ही
तृप्त हो जाते है
कुछ रिश्ते सदा-सदा के लिये !!!!
-सीमा 'सदा'
सुंदर रचना
ReplyDeleteआभार आपका
ReplyDeleteबहुत गहरी रचना ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteरिश्तों की एक नदी
ReplyDeleteबहती है यहाँ अदृश्य होकर
जिसे अंजुरि में भरते ही
तृप्त हो जाते है
कुछ रिश्ते सदा-सदा के लिये !!!
पितरों की तृप्ति से मन तृप्त हो जाता है । भावमयी प्रस्तुति ।।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteलगभग अनछुआ विषय । और बहुत सहज मन के भावों की सरल अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपने कितने लोगों के दिल की बात कह दी होगी, पता नहीं. अभिनन्दन.
ReplyDeleteअति उत्तम... ह्रदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर मार्मिक रचना
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