आज, फिर मन में आया,
शब्दों की पिटारी खोल लूँ।
विवेक का पल्लू पकड़ कर
चुनिंदा, जादुई शब्द ढूँढ लूँ।
जिनमें हो आकर्षण अनन्त
हों मस्त पुरवाई से, स्वछंद।
सुबह की ओस में नहाए हुए
लिए भीनी २ फूलों की सुगंध।
राही कुछ सीखें, ऐसा लुभाएँ,
वात्सल्य भरी ठंडक पहुँचाएँ।
एक नन्हा जीव दे रहा दस्तक
द्वार पर 'स्वागत है' लिख जाएँ।
-कविता गुप्ता
ReplyDeleteजिनमें हो आकर्षण अनन्त
हों मस्त पुरवाई से, स्वछंद।
बहुत ही सुन्दरता से शब्दों की महिमा का बखान
Deleteकरती रचना
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
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