आज, फिर मन में आया,
शब्दों की पिटारी खोल लूँ।
विवेक का पल्लू पकड़ कर
चुनिंदा, जादुई शब्द ढूँढ लूँ।
जिनमें हो आकर्षण अनन्त
हों मस्त पुरवाई से, स्वछंद।
सुबह की ओस में नहाए हुए
लिए भीनी २ फूलों की सुगंध।
राही कुछ सीखें, ऐसा लुभाएँ,
वात्सल्य भरी ठंडक पहुँचाएँ।
एक नन्हा जीव दे रहा दस्तक
द्वार पर 'स्वागत है' लिख जाएँ।
-कविता गुप्ता
ReplyDeleteजिनमें हो आकर्षण अनन्त
हों मस्त पुरवाई से, स्वछंद।
बहुत ही सुन्दरता से शब्दों की महिमा का बखान
Deleteकरती रचना
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteउम्दा रचना.
ReplyDeleteनाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-10-2018) को "शरीफों की नजाकत है" (चर्चा अंक-3117) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ख़ूब
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