पागलपन की हद तक सपनों को चाहना।
कुछ नया कर दिखा, दिल यह कह रहा।
क्षितिज तक उड़ान है भरना,
सपनों को साकार है करना।
चाहत ऊँची उड़ान की,
मुश्किल डगर है आसाँ नहीं।
मेहनत से नहीं है डरना,
ख़्वाब को पूरा है करना।
हौसला बुलन्द कर,
गिरने से नहीं है डर।
उठना है थकना नहीं,
उड़ान को क्षितिज तक है पहुँचाना।
ईमानदारी से किया प्रयास,
ख़ुद पर किया गया विश्वास।
कभी व्यर्थ नहीं है जाता,
इक दिन ज़रूर है जिताता।
ख़्वाबों को महसूस कर ,
मंज़िल मिलेगी तुझे,
पंख सभी है फैलाते,
हुनर उड़ने का किसी-किसी को ही आता,
ख़्वाब तो देखते है कई,
हक़ीक़त में कोई-कोई ही ढालता।
-प्रीति विकास मोहनानी 'भारती
सुंदर प्रस्तुती.
ReplyDeleteलेकिन जो उड़ नहीं पाता वो घाटी में उतर सकता है...घाटी में आसमान से ज्यादा रंग हैं ज्यादा खूबसूरती है और सराबोर की अनुभूति है.
बहुत खूब।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-10-2018) को "नहीं राम का राज" (चर्चा अंक-3113) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteउम्दा रचना
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सुन्दर रचना....
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