एक करतब दूसरे करतब से भारी देखकर
मुल्क भी हैरान है ऐसा मदारी देखकर,
जिनके चेहरे साफ दिखते हैं मगर दामन नहीं
शक उन्हें भी है तेरी ईमानदारी देखकर,
उम्रभर जो भी कमाया मिल गया सब खाक में
चढ गया फांसी के फंदे पर उधारी देखकर,
मुल्क के हालात कैसे हैं पता चल जाएगा
देखकर कश्मीर या कन्याकुमारी देखकर,
सर्द मौसम में यहां तो धूप भी बिकने लगी
हो रही हैरत तेरी दूकानदारी देखकर,
इस तरह के नोट चूरन में निकलते थे कभी
सब यही कहते दिखे कल दो हजारी देखकर,
देखने सूरत गया था आइने के सामने
आईना रोने लगा हालत हमारी देखकर।।
-अतुल कन्नौजवी
एक करतब दूसरे करतब से भारी देखकर
ReplyDeleteमुल्क भी हैरान है ऐसा मदारी देखकर,
जिनके चेहरे साफ दिखते हैं मगर दामन नहीं
शक उन्हें भी है तेरी ईमानदारी देखकर,
वाहवाह...बहुत सुन्दर... बहुत खूबसूरत...
कभी नोटबंदी कभी सर्जिकल स्ट्राइक तो कभी कुछ और करतब देश हैरान तो है .....
लाजवाब, शानदार गजल....
वाह!!!
सारे तंज बेअसर ही रहेंगे
ReplyDeleteसियासत गूंगी बहरी और लंगड़ी अपाहिज हो गयी है.
उम्दा रचना से अवगत करवाया.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.10.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3114 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/10/blog-post_3.html
ReplyDeleteवाह ! न इधर के न उधर के.आखिर हम किसकी तरफ हैं..या फिर हमें शक करने की आदत हो गयी है..
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