Monday, October 8, 2018

शहर में जश्न हे, नैजो पे चढे है बच्चे ......मुजफ्फर हनफ़ी

दोस्तों नजरे फसादात नही होने की 
जान दे कर भी मुझे मात नहीं होने की 

उन से बिछड़े तो लगा जैसे सभी अपनो से
आज के बाद मुलाकात नहीं होने की

ये कड़े कोस मसाफत के बरस दिन तक है 
ओर दोराने सफर रात नही होने की 

बीच के लोग नकरीन बने रहते हैं 
दू बदू उन से मेरी बात नही होने की 

देखो मिट्टी को लहु से ना करो आलूदाह 
वर्ना इस साल भी बरसात नही होने की 

शहर में जश्न हे, नैजो पे चढे है बच्चे 
आज मकतब मे मुनाजात नही होने की 

मेरे मजहब ने सिखाया है मुजफ्फर मुझको 
जंग की मुझ से शुरूआत नही होने की 
- मुजफ्फर हनफ़ी

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-10-2018) को "ब्लॉग क्या है? " (चर्चा अंक-3119) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. क्या बात,बहुत ही लाज़वाब ग़ज़ल -
    बीच के लोग नकरीन बने रहते हैं
    दू बदू उन से मेरी बात नही होने की

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  4. आपकी कलम दर्द ही लिखती है क्या ?

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