प्रेम की नदी का जहाँ से उद्गम होता है
मेरे उस हृदय के अन्तःपुर पर -
हक़ तुम्हारा है
तू जो चाहे कर मेरे साथ
मुझे आँख मूँद कर स्वीकार है
पर कहने की पहल तुम करो
कि दिन नहीं गुज़रता कब से
रातों को बस तेरा इंतज़ार है
तू साथ तो धरती पर स्वर्ग
तेरे ख़्वाब के बग़ैर तो...
नीदें भी बेकार हैं
आजा गले लगा ले यार
मुझे तुझसे प्यार है.....
-एस.के. गुडेसर 'अक्षम्य'
सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-10-2018) को "सुहानी न फिर चाँदनी रात होती" (चर्चा अंक-3134) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/10/blog-post_23.html
ReplyDeleteअतिसुन्दर
ReplyDeleteमेरे ब्लाँग पर स्वागत है
अखिर कहाँ गये वो प्रकृति के सफाईकर्मि गिद्द https://chuwaexpress.blogspot.com/2018/10/blog-post_23.html?m=1