Saturday, October 13, 2018

बीच भँवर में डोले कश्ती.......डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'

जीवन में आई बाधाएँ
हमको नाच नचाती हैं,
सुलझ न पाए गुत्थी कोई
उलझन ये बन जाती हैं।

असमंजस का भाव जगातीं
दिल को ये भटकाती हैं,
मृग शावक से चंचल मन को
व्याकुल ये कर जाती हैं।

रिश्तों के कच्चे धागों में
उलझ गाँठ पड़ जाती हैं,
हस्त लकीरें भेद छिपातीं
उलझन फिर कहलाती हैं।

बीच भँवर में डोले कश्ती
मंज़िल नज़र न आती है,
व्यवधानों से घिर जाने पर
हिम्मत साथ निभाती है।

जीवन पथ पर उलझन सारी
भूल भुलैया बन जाती हैं,
धैर्य धरित सन्मार्ग चलाती
सुबुद्धि राह दिखाती है।

उलझन से घबराना कैसा
शक्ति हमें बतलाती है,
जो मन जीता वो जग जीता
कर्मठता सिखलाती है।
-डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'

डॉ. रजनी अग्रवाल “रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मो.-9839664017)


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