उसको हैरत में डालना है मुझे,
और दिल से निकालना है मुझे |
एहतियातो से उसको छूना है,
अपना दिल भी संभालना है मुझे |
तेरे और मेरे नाम का दीपक,
आसमां में उछालना है मुझे |
दश्त प्यासा है मेरे दिल का बहुत,
यानि दरिया निकालना है मुझे |
शाम होते ही से जो आती,
ऐसी यादो को टालना है मुझे |
दिल का क़ायम रहे अँधेरा भी,
और जुगनू भी पलना है मुझे |
- अर्पित शर्मा "अर्पित"
दिल का क़ायम रहे अँधेरा भी,
ReplyDeleteऔर जुगनू भी पालना है मुझे |
बढ़िया।
सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-10-2018) को "प्यार से पुकार लो" (चर्चा अंक-3136) (चर्चा अंक-3122) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह!!लाजवाब!!👌👌👌
ReplyDeleteवाह क्या बात,
ReplyDeleteदिल का कायम रहे ,अंधेरा भी
और जुगनू भी पालना है मुझे ....
वाह! बेहद ही खूबसूरत...
ReplyDeleteक्या कहूं? शब्द नहीं मिलते ।
ReplyDeleteकमाल के शेर ...
ReplyDeleteनगीने जैसे चमकते हुए ... नए तेवर लिए ...