तेरे खामोश होने की क्या थी वज़ह,
कि फिर लौट न आने की क्या थी वज़ह।
तेरे होने न होने का अब फर्क नहीं पड़ता,
साथ होकर भी साथ न होने की क्या थी वज़ह।
बीती बातों का क्यों अफसोस है तुझे,
ग़ज़ल लिखने की क्या थी वज़ह।
मगरूर हुए वो कुछ इस तरह,
दिल टूट बिखर जाने की क्या थी वज़ह।
बातें तुम करती हो फ़लां फ़लां की,
खुद से बिछड़ने की क्या थी वज़ह।
-पंकज शर्मा
वाह शानदार
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-10-2018) को "सब के सब चुप हैं" (चर्चा अंक-3126) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर रचना 🙏
ReplyDeleteAkhiri sher kitna sundar hai! Saari ghazal mein muhe sabse achha vo sher laga.
ReplyDeleteवाह ... कमाल के शेर ...
ReplyDeleteबहुत खूब
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