Picture courtesy : @Shimlalife Twitter with permission
वहाँ कहीं एक सेब के
बगीचे से घिरा
एक पुराना घर है
वहां एक बचपन दफ़्न है
मेरी नानी का
पहाड़ी गुनगुनाना गुम है
मेरे नाना की कहानियाँ
खो गयी हैं
वो पगडंडियां
अब मुझे भूल गयीं हैं
वो पक्की रस्सी के झूले
वीरान हैं
एक भाषा, एक उम्र
एक जीने का सलीका
पुराने घरों का साथ
मर चुका है
वो पुराना घर
अब नया बन चुका है !
- पूजा प्रियंवदा
पार्श्व स्वर
पार्श्व स्वर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-10-2018) को "दुर्गा की पूजा करो" (चर्चा अंक-3133) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबदलते समय के साथ बहुत कुछ खो जाता है ... यही नियति है ...
ReplyDeleteसमय बीत जाता है यादों के गुबार रह जाते है।
ReplyDeleteभावुक रचना।