Saturday, October 20, 2018

शब्द... राजेन्द्र जोशी


लड़ते हैं, झगड़ते हैं
डराते हैं, धौंस दिखाते हैं

डरते हैं, दुबकते हैं
प्रेम करते ,

कांपते हैं
कभी तानाशाह होकर
भीख मांगते दिखते हैं.

मैं और वे
खेला करते हैं
मिलजुल कर
भोथरे हुए शब्दों को
धार देते हुए
हो जाते हैं मौन
अपना ही ताकत से
आपसी खेल में.
- राजेन्द्र जोशी


4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना

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  2. बहुत ही सुन्दर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-10-2018) को "कल-कल शब्द निनाद" (चर्चा अंक-3131) (चर्चा अंक-3117) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. सुन्दर रचनाएँ बधाई

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