Friday, September 29, 2017

कुछ फुटकर शेर....राम नारायण हलधर

दर्द घुटनों का मेरा जाता रहा ये देख कर
थामकर ऊँगली नवासा सीढ़ियां चढ़ने लगा 
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बरी हो कर मेरा क़ातिल सभी के सामने खुश है 
अकेले में फ़फ़क कर रो पड़ेगा , देखना इक दिन 
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मौन के शूल को पंखुड़ी से छुआ 
मुस्कुराने से मुश्किल सरल हो गयी
*** 
कभी है "चौथ" उलझन में, कभी रोज़े परेशां हैं 
किसी दिन चाँद के ख़ातिर, बड़ी दीवार टूटेगी
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तेरा वादा सियासतदान ऐसा खोटा सिक्का है 
जिसे अँधा भिखारी भी सड़क पर फेंक देता है
-राम नारायण हलधर

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