दर्द घुटनों का मेरा जाता रहा ये देख कर
थामकर ऊँगली नवासा सीढ़ियां चढ़ने लगा
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बरी हो कर मेरा क़ातिल सभी के सामने खुश है
अकेले में फ़फ़क कर रो पड़ेगा , देखना इक दिन
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मौन के शूल को पंखुड़ी से छुआ
मुस्कुराने से मुश्किल सरल हो गयी
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कभी है "चौथ" उलझन में, कभी रोज़े परेशां हैं
किसी दिन चाँद के ख़ातिर, बड़ी दीवार टूटेगी
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तेरा वादा सियासतदान ऐसा खोटा सिक्का है
जिसे अँधा भिखारी भी सड़क पर फेंक देता है
-राम नारायण हलधर
सुन्दर।
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