नहीं देखा है कभी चाँद में दीवाने को
कहाँ ढूंढू उस भटकें हुए दीवाने को।
यूँ मैंने तुम्हें ही माँगा है इस ज़माने से
देखा है मैंने तो मजबूर इस ज़माने को।
मग्न होती हूँ नज़्म जब कोई सुनाने में
तराने चुनें है दिलकश जरा सुनाने को।
यूँ दाग दिल पर लगते नहीं लगाने से
बेदाग दिल ही रखा है दिल लगाने को।
हँसी की गूंज ही आए जिस आशियानें से
बताओ कैसे बचाओगे आशियानें को।
कभी मुकर न जाना वादे "नीतू" निभाने से
जहाँ की रस्मे है आना होगा निभाने को।
-नीतू राठौर
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-09-2017) को गली गली गाओ नहीं, दिल का दर्द हुजूर :चर्चामंच 2725 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद हसीन गज़ल.
ReplyDeleteवाह्ह्ह....बहुत सुंदर👌
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